बिल्लेसुर बकरिहा–(भाग 10)

पति को प्रसन्न देखकर पत्नी ने अर्जी पेश की जिस तरह पहले बड़े आदमियों का मिजाज परखा जाता था,


 फिर बात कही जाती थी। बिल्लेसुर गर्जमन्द की बावली निगाह से देखते रहे।

 सत्तीदीन ने उसमें एक सुधार की जगह निकाली, कहा, ‘‘बिल्लेसुर अपने आदमी हैं इसमें शक नहीं, लेकिन इसमें भी शक नहीं कि उस छोकड़े से ज्यादा खायेंगे।

 हम तनख्वाह न देंगे। दोनों वक्त खा लें।

 तनख्वाह की जगह हम तहसील के जमादार से कह देंगे, वे इन्हें गुमाश्तों के नाम तहलीस की चिट्ठियाँ देते रहें, 

ये चार-पाँच घण्टे में लगा आयेंगे, 

इन्हें चार-पाँच रुपये महीने मिल जाया करेंगे, हमारा काम भी करते रहेंगे।’’

सत्तीदीन की स्त्री ने किये उपकार की निगाह से बिल्लेसुर को देखा।

 बिल्लेसुर खुराक और चार-पाँच का महीना सोचकर अपने धनत्व को दबा रहे थे। 

इतने से आगे बहुत कुछ करेंगे। 


सोचते हुए उन्होंने सत्तीदीन की स्त्री से हामी की आँख मिलायी।


जमादार गम्भीर भाव से उठकर हाथ-मुँह धोने लगे।

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